सोमनाथ मंदिर शिवजी के 12 ज्योर्तिलिंगों में से सबसे प्रथम स्थान पर आने वाला एक महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिरो मे आता है। यह मंदिर भारत के गु्जरात राज्य के वेरावल क्षेत्र में सम्रुद के किनारे पर स्थित है। तो चलिये हम आज जानते हैं कि सोमनाथ मंदिर का निमार्ण किसने कराया है और इसकी क्या कथा है और इसका रहस्य क्या है।
गुजरात मे सोमनाथ मंदिर का निर्माण किसने किया
प्राचीन मान्यता और ऋग्वेद मे भी लिखा है की स्वयं चन्द्रदेव ने सोमनाथ मंदिर का निर्माण किया था। क्या आप लोगो को पता हैं कि चन्द्रदेव का एक अन्य नाम भी है सोम जिसके आधार पर इस मंदिर को सोमनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
सोमनाथ मंदिर की कथा
चीनकाल के अनुसार यह कथा है की चंद्र देवता ने दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियों के साथ विवाह किया था। परंतु चंद्र उनमें से केवल एक रोहिणी को ही सबसे अधिक प्रेम करता था। इसी की वजह से उनकी अन्य 26 पत्नियां उनसे खुश नहीं रहती थी। चंद्र को सिर्फ रोहिणी से ही अत्यधिक प्रेम करने के चलते उन 26 पत्नियां ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से चन्द्रदेव की शिकायत कर दी तभी राजा दक्षप्रजापति ने चन्द्रदेव (सोम) को काफी समझाया परन्तु चन्द्रदेव के व्यवहार में बदलाव नहीं आया। इसलिए राजा दक्षप्रजापति नाराज हो गए थे और उन्होंने चंद्र देवता को श्राप दे दिया था। श्राप में कहा था की चंद्रदेव तुम अब धीरे-धीरे नष्ट हो जाओगे और जो तुम्हारे अंदर की चमक है वो भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।
इसके बाद चंद्रदेव ने तपस्या करनी शुरू की और सभी देवताओं के पास जाकर इस श्राप को हटाने के लिए उपाय पूछा। चंद्र देेव को भगवान शिव की आराधना करने के लिए ब्रह्मा जी ने उपाय बताया जिसके बाद चंद्रदेव ने भगवान शिव की घोर तपस्या करनी शुरू की और आखिरकार पर अपने अंतिम समय के अंतर्गत उन्होंने भगवान शिव जी को प्रसन्न कर ही लिया। कहा जाता है कि श्राप के कारण चंद्र देव नष्ट होने ही वाले थे की तभी भगवान शिव ने स्वयं प्रकट होकर उनको बचा लिया।
भगवान शिव जी ने किया चन्द्रदेव को श्राप से मुक्त
भगवान शिव जी स्वयं प्रकट हो गए और चन्द्रदेव से बोले मांगो क्या चाहिए तुम्हे तब चन्द्रदेव ने भगवान शिव से राजा दक्षप्रजापति के द्वारा दिये गये श्राप से मुक्त पाने के लिए प्रार्थना की। तभीं भगवान शिव ने चंद्रदेव से कहा कि मैं तुम्हारे श्राप को खत्म तो नहीं कर सकता हूँ लेकिन इसे कम जरूर कर सकता हूँ। इसके बाद भगवान शिव जी ने चंद्रदेव को आशीर्वाद दिया कि तुम एक महीने मे 15 दिन घटोगे और 15 दिन बड़ोगे। इसके बाद से ही चंद्रमा महीने में सभी दिनों में घटते और बढ़ते रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि तपस्या करते हुए जो अंतिम रूप चंद्र देव का बचा हुआ था, उसे भगवान शिव ने अपने सिर पर धारण कर लिया था यही सोमनाथ मंदिर का रहस्य है। चंद्रमा के इस अंतिम स्वरूप को आज भी भगवान शिव के सिर पर देखा जा सकता है। चन्द्रदेव अपने नये जीवन के लिए काफी प्रसन्न थे और उन्होंने भगवान शिव को विश्राम करने के लिए एक मंदिर बनाया जिसे आज सभी लोग सोमनाथ मंदिर के नाम से जानते हैं।

सोमनाथ मंदिर के बाण स्तम्भ का रहस्य जो सदियों से है अनसुलझा
सोमनाथ मंदिर में एक स्तम्भ बना है जिसका उल्लेख छठी शताब्दी से मिलता है इसका सीधा मतलब यह है कि यह स्तम्भ उस शताब्दी में भी मौजूद था। यह स्तम्भ रहस्यमयी है इसके रहस्य का पता अभी तक नहीं सुलझा है और सबको हैरान करने वाला है। इस बाण स्तम्भ के बारे में कहा जाता है कि यह एक दिशा बोधक स्तम्भ है, जिसके ऊपर एक बाण (तीर) का निशान बना हुआ है। जो सम्रुद की तरफ को मुंह करके बनाया गया है। ”आसमुद्रात दक्षिण ध्रुव पर्यन्त अबाधित ज्योर्तिमार्ग” यह इस स्तम्भ पर लिखा हुआ है जिसका मतलब है कि समुद्र के इस स्थान से दक्षिण ध्रुव तक सीधा रेखा के अनुसार कोई भी बाधा या अवरोध नहीं है यानि कोई भी भूखण्ड या पहाड़ नहीं है।
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भगवान श्रीकृष्ण संबंधित एक अन्य मान्यता के अनुसार
एक मान्यता यह भी है कि भालुका नाम का तीर्थ स्थान पर जब भगवान श्रीकृष्ण विश्राम कर रहे थे, तभी एक शिकारी को उनके पैर के तलवे के चिन्ह को हिरण की आंखे समझकर तीर मारा दिया गया था जोकि भगवान श्रीकृष्ण के लगा गया था जिससे उनके प्राण निकल गए थे। तभी देह त्यागने के बाद भगवान श्रीकृष्ण इसी स्थान से वैकुण्ठ धाम को चले गये थे। इसलिये इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित एक भव्य मंदिर भी बना है।
ज्योतिर्लिंग किसे कहते है और उनके नाम क्या है
ज्योतिर्लिंग उन स्थानों को कहा जाता है जहां पर भगवान शंकर स्वयं प्रकट हुए हो भारत देश में कुल 12 ज्योतिर्लिंग स्थान है।
- सोमनाथ (गुजरात)
- मल्लिकार्जुन (आंध्र प्रदेश)
- महाकालेश्वर (मध्य प्रदेश)
- ओमकारेश्वर (मध्य प्रदेश)
- केदारनाथ (उत्तराखंड)
- भीमाशंकर (महाराष्ट्र)
- काशी विश्वनाथ (उत्तर प्रदेश)
- त्र्यबकेश्वर (महाराष्ट्र)
- वैद्यनाथ (महाराष्ट्र)
- नागेश्वर (गुजरात)
- रामेश्वरम (तमिलनाडु)
- घृष्णेश्वर ( महाराष्ट्र)
भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंग में अपना एक अलग अलग महत्व रखते हैं। परन्तु सभी ज्योर्तिलिंगों में से केवल एक त्रयम्बकेश्वर मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है जिसमें तीनों देव ब्रहमा, विष्णु, महेश एक साथ विराजमन है। इन सभी ज्योर्तिलिंगों को बहुत ही प्रसिद्ध व वास्तविक माना जाता है। भगवान शिव के 12 प्रसिद्ध ज्योर्तिलिंगों के नाम इस प्रकार से दिए हैं।