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अजीर्ण व अफारा का उपचार – बदहजमी का कारण, लक्षण और घरेलू इलाज

अजीर्ण व अफारा का उपचार

अजीर्ण आवश्यकता से अधिक खा लेने, गठि भोजन करने, ज्यादा तली चीज़े खाने भरपेट भोजन करने के बाद तनिक भी आराम करने के कारण अजीर्ण हो जाता है। डकारे आने लगती है। पेट गुड़गुड़ करने लगता है। गैस बनने लगती है। ऐसा होने पर मूली के द्वारा निम्न उपचार में से कोई एक करे |

मूली धोकर उसकी कई फांके कर उस पर निम्बू की बुँदे टपका कर रगड़ ले ले और खूब चबा चबाकर खा जायें। दो चार मूली के पत्ते भी चबा डालें। अजीर्ण ठीक हो जायेगा | पढ़िए – नींबू पानी पीने के फायदे

सिरके में तैयार किया गया मूली का अचार भी अजीर्णता को दूर करता है। जिन्हें सिरका पसन्द न हो, उन्हें तेल में डालकर नमक भुरककर खाना चाहिये। अचार तेल में भी बनता है और पाचक भी है।

मूली-पत्तों की कोपले बारीक काट लें और नींबू की दो बूंदें मिलाकर नमक भुरक लें। जल्द आराम पाएंगे।

यदि दांत काम न करते हों तो नर्म पत्तों के साथ आधी मूली को पीसकर रस निकाले और नाक बन्द कर पी जाएं। दो घंटे बाद फिर यही किया दोहराएं। अजीर्ण जाता रहेगा।

अजीर्ण, अपच या बदहज्मी का मूलकारण मन्दाग्नि होती है। जिसका पक्वाशय कमजोर होगा, वह गरिष्ठ भोजन नहीं पचा सकता है। जरूरी नहीं मन्दाग्नि कि पहले से हो, क्योंकि बदपरहेजी से बाद में भी यह आग ठंडी पड़ सकती है।

ये भी पढ़ें: खट्टी-मीठी इमली मे भी छुपे है स्वस्थ रहने के कई सारे राज

इसके लिए अजीर्ण के रोगी को जायकेदार चूर्ण बनाकर दें।

मूली के दो सौ ग्राम रस में पचास ग्राम देशी अजवाइन और दस ग्राम रोध नमक डालें दें। सौ ग्राम नींबू रस निचोड़ दें। दो सप्ताह में आधे से अधिक मूली-नींबू के रस सूख जाएंगे।

खरल कर शीशी में भर लें। कच्चे पपीते को काटकर कप में उसका दूध जमा कर लें। छोटी कड़ाही धीमी आंच पर रख पहले रेत की तीन-चार मुट्ठी डालकर तह बिठा दें, उसपर पपीते का दूध सुखाने के लिए कप रख दें।

पानी सूख जाने पर जो सफेद चूर्ण बच जाय, उसे समेटकर शीशी में भर लें। यही पपीते का सत्व है जो ‘पेपीन’ के नाम कैमिस्टो के यहां चांदी के भाव बिकता है। दो ग्राम मूली-चूर्ण और एक चौथाई पपीता-सत्व मिलाकर गर्म पानी के साथ निगल जाएं। सुबह-श्याम एक-एक खुराक लेते रहें।

वर्षों पुराना अजीर्ण भी मिट निकलेगा मन्दाग्नि जाग उठेगी। हाजमा ऐसा होगा दो कि पचा लें। कंकड़-पत्थर हजम !

अफारा

अजीर्ण या अपच के कारण से ही अफारा होता है। शरीर में गर्मी और पित्त कम होने पर यह रोग होता है। बदहज्मी से वायु संचार में रुकावट पड़ती है। पेट के किसी भाग में चक्रवात की तरह हो जाती है। अधिक दबाव में हो तो वहीं वायु “गोला” बन जाती है और साँस लेना कठिन हो जाता है। दर्द से तड़पकर आदमी लम्बे श्वास खींचता है, तो खीची गई वायु भी पेट की वायु में जा मिलती है।

शान्त करने के लिए जो चूर्ण खाए जाते हैं, उनसे गर्मी पाकर वायु आगबगुला हो जाती है। इन बगूलों के कारण तकलीफ और भी बढ़ जाती है।

इसका कारण आहार-विशेषज्ञों ने “सोडियम” और “क्लोरीन” खनिज लवणों की कमी माना है। क्षार-तत्व (सोडियम) मूली में इतना है कि पत्थर भी गला दें। क्लोरीन का काम ही शरीर को मल रहित कर साफ-सुथरा रखना है । मूली में यह प्रचुर मात्रा में है। मूली और पातगोभी, मूली और टमाटर, या मूली और गाजर का रस सौ-सौ ग्राम मात्रा में मिलाकर पी जाएं। मल-मूत्र के साथ वाय निकल जाएगी और अफारा निकल जाएगा। नमक न डालें क्योंकि मूली में स्वयं नमक होता है।

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