आपने अक्सर बड़े-बूढ़े लोगो के मुँह से जरूर सुना होगा की मेहनत के फल का महत्व बहुत अच्छा होता है। आज हम अपने इस आर्टिकल के द्वारा आपको मेहनत के फल का महत्व से जुड़ी कुछ रोचक कहानियों को बताने वाले हैं।
एक सुंदर सा नगर था, जिसमे प्रतिष्ठित व्यापारी रहते थे। इस प्रतिष्ठित व्यापारी के बहुत समय के बाद एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। मतलब की बहुत दिनों के बाद उनके घर में बच्चा हुआ था। उन्होंने उस बच्चे का नाम चंद्रकांत रखा।
चंद्रकांत को घर में सभी लोग बहुत दुलारा करते थे। अतिकठिनाई और बहुत लंबे समय के इंतजार के बाद संतान का सुख मिलने के कारण घर के प्रत्येक व्यक्ति के मन पुत्र चंद्रकांत के प्रति विशेष प्रकार का लाड़ और प्यार था। इस लाड़ और प्यार की वजह से चंद्रकांत बहुत बिगड़ भी गया था। उसके घर में किसी भी बात का कोई अभाव ही नहीं होता था। चंद्रकांत की कोई भी मांग होती उससे पहले ही उसकी इच्छा को पूरा कर दिया जाता था। शायद इसी लाड़ और प्यार के कारण चंद्रकांत को ना तो की बात को सुनने की आदत थी और ना ही मेहनत के महत्व का आभास था। चंद्रकांत ने जीवन में कभी भी कोई अभाव देखा ही नहीं था,इसलिए ही इस प्रतिष्ठित व्यापारी के बेटे का नजरिया जीवन के प्रति बहुत ही अलग प्रकार के था और वहीं इस व्यापारी ने बहुत कड़ी मेहनत से अपने व्यापार को बनाया था। इस ढलती हुई उम्र के साथ-साथ व्यापारी को अपने कारोबार के प्रति बहुत चिंता होने लगी थी। इस व्यापारी को बहुत अच्छे से पता था,की चंद्रकांत को मेहनत के फल का महत्व नहीं पता है,क्योकि चंद्रकांत के व्यवहार से प्रत्यक्षता साफ-साफ दिखाई देती थी। व्यापारी को आभास हो चूका था कि उसके लाड और प्यार ने चंद्रकांत को जीवन की वास्तविक्ता के बारे में नहीं बताया और उसको जीवन में मेहनत के महत्व से भी बहुत दूर कर दिया हैं। बहुत बड़ी गहन चिंतन के बाद व्यापारी ने निश्चय किया कि वो अब चन्द्रकांत को मेहनत के फल का महत्व,स्वयं ही सिखायेगा इसके लिए उसको कुछ भी करना पड़े तो वो भी करेगा,फिर चाहे उसके लिए उसको कठोर ही क्यूँ ना बनना पड़े तो वो कठोर भी बनेगा।
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अगले दिन की बात है,व्यापारी ने चंद्रकांत को अपने पास बुलाया और बहुत ही तीखे आवाज में चंद्रकांत से बात की। उसने बोला चंद्रकांत तुम्हारा मेरे परिवार में कोई अस्तित्व ही नही बनता हैं, तुमने मेरे कारोबार में अभी तक किसी भी प्रकार से कोई योगदान नहीं दिया इसलिए में अब ये चाहता हूँ कि तुम अपनी मेहनत से धन को कमाओं,तब ही तुम्हे तुम्हारे धन के मुताबिक तुमको दो वक्त का खाना पानी दिया जायेगा। इतनी बड़ी बात को सुनकर भी चन्द्रकांत पर कोई फर्क ही नहीं पड़ा, उसने इस बात को क्षण भर का गुस्सा समझ लिया की अभी तो पिता जी गुस्सा कर रहे है। लेकिन अब तो इस व्यापारी ने भी ठान ले थी। की इसको अब मेहनत का फल का महत्व समझना ही होगा। व्यापारी ने घर पर मौजूद सभी सदस्यों को आदेश दिया था की अब कोई भी चन्द्रकांत की मदद नहीं करेगा और ना ही उसे बिना कोई धन के भोजन देगा।
लेकिन चन्द्रकांत से तो सभी लोग बहुत प्यार करते थे, इस बात के चन्द्रकांत ने बहुत फायदा उठाया। ऐसे ही वो रोज -रोज किसी ना किसी के पास जाकर धन को मांग लाता और अपने पिता जी को दे देता। जब-जब चंद्रकांत पैसे लेकर आता तो व्यापारी उसे उन पैसो को कुँए में फेकने के लिए बोल देता और चंद्रकांत भी बिना किसी अड़चन के उन पैसो को फेक देता और उसको रोज-रोज भोजन भी मिल जाता। ऐसा कई दिनों तक होता रहा लेकिन कुछ दिनों के बाद अब घर के लोगो को भी रोज-रोज इस तरह से धन देना में भारी परेशानी होने लगी। घर के सभी लोग उससे धीरे-धीरे अपनी कन्नी को काटने लगे, जिस कारण से चंद्रकांत को मिलने वाला धन अब कम होता जाने लगा और उस धन के हिसाब से उसको भोजन भी कम मात्रा में मिलने लगा।
एक दिन ऐसा भी आया उस दिन चन्द्रकांत को किसी ने भी धन नहीं दिया और उसे बहुत भूख भी लगी तो उसने अपनी भूख को शांत करने के लिए गाँव में जाकर किसी के कार्य को करना पड़ा। उस दिन वो बहुत ही देर से और थका हारा हुआ व्यापारी के पास पहुँचा और धन को देकर उसने भोजन को माँगा। रोज के अनुसार ही व्यापारी ने उसे उस धन को भी कुँए में फेंकने का ही आदेश दिया था। लेकिन इस बार चंद्रकांत सहजता से इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा था। चंद्रकांत ने कहा पिता जी मैं इस धन को इतनी मेहनत करके और अपना पसीना बहाकर इस धन को लाया और आपने एक क्षण में मुझे बोल दिया को इस धन को कुँए में फेंक दो। यह बात को सुनकर व्यापारी समझ गया कि आज चंद्रकांत को मेहनत के फल का महत्व समझ आ चूका हैं। व्यापारी भलीभांति से ये जानता था, कि अभी तक तो उसके परिवार वाले चन्द्रकांत की मदद कर रहे थे, इसलिए ही चंद्रकांत इतनी आसानी उस धन को कुँए में फेक देता था। लेकिन व्यापारी को भलीभांति पता था, एक न एक दिन तो सभी परिवारजन चन्द्रकांत से कन्नी काट ही लेंगे,उस दिन चन्द्रकांत के पास कोई और विकल्प शेष ही नहीं होगा।तभी वो मेहनत के फल का महत्व को समझेगा।फिर व्यापारी ने चन्द्रकांत को बड़े प्यार से गले लगा लिया और अपना सारा के सारा कारोबार अपने लाडले बेटे चन्द्रकांत को सोंप दिया।
शिक्षा :- आज के युग में अमीर परिवारों की संतानों को मेहनत के फल का महत्व पता ही नहीं होता और ऐसे में उनके माता पिता के यह दायित्व बनता हैं,कि वो अपने बच्चो को जीवन की वास्तविक्ता से जरूर अवगत कराये।
अपने बच्चो को बोले लक्ष्मी जी उसी के घर में आती हैं, जहाँ पर उसका सम्मान किया जाता हैं।
मेहनत करना ही एक ऐसा हथियार हैं,जो किसी भी मनुष्य को किसी भी प्रकार की परिस्थिती से बाहर निकल सकती है।
मेरे द्वारा लिखे गए इस आर्टिकल में अगर मुझ से कोई भूलवश त्रुटि हो गई हो,तो उसके लिए में क्षमा प्रार्थी हैं।
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